आवाहन - भाग 12
गतांक से आगे...
लाल साड़ी में सुसज्जित वह योगिनी… उसका रूप और सौंदर्य गज़ब का था, ऐसा लग रहा था मानो जैसे कोई अप्सरा ही आकर बैठ गयी हो सामने… और उसी सौंदर्य की आभा हज़ार गुना बढ़ा रही थी उसकी मनमोहक मुस्कान। सज्जन और संन्यासी ने कमरे में तुरंत ही प्रवेश किया और साथ ही साथ मैंने भी अंदर प्रवेश किया।
योगिनी ज़रा भी विचलित नही हुई और हौले से उसने पहले सन्यासी को देखा फिर साथ आए सज्जन को और अंत में मुझे..। जैसे ही उसकी नज़रें मुझसे मिलीं, मुझे लगा कि धीरे-धीरे जैसे मुझे मेरा बोध ही नहीं है, जो भी है सो वही मात्र है…। जैसे उसकी नज़रें मुझे खींच कर कहीं दूर ले जा रहीं है, और तभी सज्जन की आवाज़ आती है कि, संभालो, वह सम्मोहन प्रयोग कर रही है…मैंने अपने आपको तुरंत संयत किया।
योगिनी ये देखकर हिंसक शेरनी की तरह तन गयी और किसी विशेष मुद्रा बना कर उसने आंखें बंद कर लीं…।
सज्जन ने भी कुछ मंत्रोचार किया, और तभी पूरे कमरे में अंधकार छा गया, कुछ भी सूझने की स्थिति में नहीं था। कुछ ही क्षणों में एक प्रकाश पुंज फूटा और संन्यासी का कारण शरीर एक झटके से खिंचकर स्थूल शरीर की ओर जा रहा था।
इसी के साथ सज्जन कमरे से बाहर निकल गए…योगिनी ने भी अपनी आंखें खोल दीं, जैसे कि संभावना थी, उसका विचार संन्यासी पर तुरंत ही प्रहार करना था, जब वह अपने स्थूल शरीर में प्रवेश कर लें।
योगिनी अपने आसन से उठी और खड़ी हो कर के उसने अपना प्रयोग चालू किया।
लेकिन अब मेरी बारी थी।
वहीं पर पड़े कुछ सरसों के दानों को उठाकर मैंने सदगुरुदेव निखिलेश्वरानंद को याद किया और जैसा कि सज्जन ने पहले ही मुझे कहा था मैंने भूतनाथ को स्मरण कर दिग्बन्धन किया, योगिनी की यह पराजय हुई और संन्यासी वापस अपने स्थूल शरीर में आ गए थे।
वायुगमन के माध्यम से वे तुरंत ही उठे और अदृश्य हो गए।
मुझे भी जैसे कोई खींच रहा हो ऐसा अनुभव हुआ…हवा में गज़ब की गति से मैं अपने सूक्ष्म शरीर तक पहुंचा और उसमें प्रवेश किया…।
उसके बाद क्या - क्या हुआ ये भी एक अलग ही कहानी है, लेकिन ये ज़रूर बताना चाहूंगा कि, "क्या हुआ उस योगिनी का"।
साधना खंडित होने से उस योगिनी को अपनी मृत्यु का वरण करना पड़ा। बाद में, वह आत्मा मुझे मिली भी थी।
लेकिन क्या सब कुछ खत्म हो गया?
नहीं।
उसकी आत्मा आज भी घूम रही है, सूक्ष्म शरीर के साथ वह अभी भी गतिशील है और बेताब है संन्यासी से बदला लेने के लिए…।
काल के गर्भ में आगे क्या होगा, कुछ नहीं कहा जा सकता।
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