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सोSहं क्रिया रहस्य

Updated: Sep 1

आवाहन भाग - 17


जैसा कि कहा गया है अनुलोम विलोम के ५ भेद है। पूरक और रेचक की प्रक्रिया तथा दोनों नथुनों से यह भेद का अस्तित्व है।


१ ) दाहिने नथुने से पूरक तथा बाएं नथुने से रेचक

२ ) दाहिने नथुने से पूरक तथा उसी नथुने से रेचक

३ ) बाएं नथुने से पूरक तथा दाहिने नथुने से रेचक  

४ ) बाएं नथुने से पूरक तथा उसी नथुने से रेचक  

५ ) दोनों नथुनों से पूरक तथा रेचक की प्रक्रिया


प्रथम चार प्रक्रिया में जब एक नथुने से पूरक करा जाए तब दूसरी तरफ के नथुने को अंगूठे से दबा दिया जाए उसके बाद कुम्भक कर के रेचक के समय भी दूसरी तरफ के नथुने को अंगूठे से दबा दिया जाए।


जब भी पूरक करे तब ‘सो’ का मन ही मन जाप करे, जितना सांस को खींचने का समय होता है, मंत्र का लय  भी उतना ही लंबा रखे।


कुम्भक के समय जितना भी संभव हो आज्ञा चक्र पर आंतरिक रूप से ध्यान देते हुए सोऽहं मंत्र का जाप करे।

रेचक करते समय सिर्फ ‘हं’ बीज का जाप करे.


इस तरह इस प्राणायाम के ५ प्रकार को १०-१० बार करे। यह प्रक्रिया २१ दिन तक नियमित रूप से करने पर आज्ञा चक्र पर एक पीला प्रकाश दिखाई देता है। इस प्रकाश में अंदर उतरने पर सूक्ष्म जगत में प्रवेश प्राप्त किया जा सकता है। इसके साथ ही साथ साधक को सोऽहं बीज का जितना भी यथा संभव हो जाप करते रहना चाहिए।


यह नाद की योग तांत्रिक प्रक्रिया का प्रथम चरण है। इसी के दूसरे चरण के लिए जो बीज मंत्र का जाप किया जाता है वह है ‘हंसः’


यह बीज भी अपने आप में एक अत्यधिक महत्वपूर्ण बीज है। जिसका उपयोग भी इसी प्राणायाम के साथ होता है। जब व्यक्ति सूक्ष्म जगत में प्रवेश कर ले उसके बाद उसे इस दूसरे चरण की प्रक्रिया को अपनाना चाहिए।


इस प्रक्रिया को अपनाने पर साधक का चित पूर्ण रूप से निर्मल हो जाता है। साथ ही साथ ह्रदय चक्र के चेतन होने से साधक अपने आप में अत्यधिक क्षमतावान बन जाता है। किसी भी स्थान पर हो रही घटना को जानना उसके लिए संभव हो जाता है। ध्यान की स्थिति साधक के लिए सहज हो जाती है।


इस प्रक्रिया में साधक को प्रथम प्रक्रिया की तरह ही जाप करना है, जब पूरक किया जाए तब ‘हं’ बीज का जाप करना है, जब कुम्भक करे तो ‘हंसः’ बीज का जाप करना है तथा जब रेचक करे तब ‘स’ बीज का जाप करना है। साथ ही साथ यथा संभव जितना भी हो सके इस मंत्र का जाप करते रहना चाहिए। इस प्रकार अनुलोम विलोम की पांचों प्रक्रियाओं को २०-२० बार करना चाहिए। यह २१ दिन का दूसरा चरण है।


इसके बाद इस प्रक्रिया का तीसरा चरण आता है। दिव्यात्मा ने जब इस प्रक्रिया का मंत्र मुझे बताया तब मैं हक्का बक्का सा रह गया, एक बारगी विश्वास नहीं आया.....


(क्रमशः)

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