top of page

सूक्ष्म शरीरः गुप्त मठ और सिद्ध क्षेत्र-2

Updated: Sep 3

आवाहन भाग-30


गतांक से आगे...


मैं अभी भी उस श्वेत वस्त्र धारी महात्मा को देख रहा था. उनकी आंखों में करुणा का सागर लहरा रहा था, निश्चय ही उन्होंने साधना जगत में उच्चतम स्तर की प्राप्ति की है। हल्की सी मुस्कान उनके अधरों पर थी।


बड़े ही स्नेह के साथ उन्होंने मुझे वह बात बतानी शुरू की जिसके लिए वे उपस्थित हुए थे, “मेरे बच्चे, साधना जगत में इस प्रकार उदास होने पर कुछ भी हासिल नहीं किया जा सकता है। किसी भी सिद्ध को देखना अथवा सिद्ध क्षेत्र को देखने के लिए पात्रता का विकास करना ज़रुरी है। तुम सिद्ध क्षेत्र के बारे में जानना चाहते हो लेकिन यह कोई मनोरंजन का विषय नहीं है। मात्र कौतुहल भाव से अगर किसी भी प्रकार का प्रयास किया जाये तो सिर्फ असफलता ही हाथ लगती है, क्योंकि सिद्धों का संसार अपने आप में अलग है, वहां पर कोई भी क्रिया एक निश्चित कार्य के लिए की जाती है। इस लिए सिर्फ जिज्ञासा भाव काफी नहीं है। अगर ज्ञान प्राप्ति के लिए साधक प्रयत्नशील होता है तो निश्चय ही उन्हें सिद्धों का साहचर्य प्राप्त होता ही है” ।


उन्होंने धीरे-धीरे एक-एक शब्द पर वजन रखते हुए अपनी बात कही। लेकिन मेरे मानस में अभी भी कुछ स्थिरता नहीं थी, अतः मेरा प्रथम प्रश्न मैंने उनके मध्य रखा “आप कौन है?” उन्होंने अपने उसी स्मित के साथ मुझे जवाब दिया “मैं उस जगतजननी का एक अंश हूं, ठीक वैसे जैसे तुम हो और इस दुनिया का कण कण है। क्या इससे अधिक कोई परिचय अनिवार्य है?” 


मेरी असमंजसता में बढ़ोत्तरी करने वाला उनका ये जवाब मुझे और व्यग्र कर रहा था। मैंने कहा, लेकिन आप यहां पर क्यों आये और आपको कैसे पता चला की मैं ये सब...


मेरे प्रश्न पूछने से पहले ही उनका उत्तर था कि सिद्ध संसार अलग है यह बात तुम्हे स्वीकार करनी होगी, निश्चित रूप से अगर कोई व्यक्ति प्रार्थना करता है तो वह पूरे सिद्ध क्षेत्र में सभी महात्माओं को ज्ञात हो जाती है. क्योंकि जो भी मानस में विचार उठता है, वह आकाश में तरंगों के माध्यम से प्रसारित हो जाता है, अतः उच्चकोटि के सिद्धजन उन विचारों को क्षण मात्र में जान लेते है, सुन लेते हैं। उनके लिए यह एक सामान्य सी बात है।


मेरा मानस अब दो भाग में विभाजित हो गया था, एक मन कह रहा था कि ऐसा कैसे हो सकता है कि मात्र प्रार्थना करने पर वह सब सुन ले, और सुनने के बाद एक सिद्ध उसके बारे में समझाने के लिए आ जाये और दूसरी तरफ का मानस कह रहा था कि जो सत्य है वह सामने है। मैंने पूछा कि मुझे आखिर क्या करना चाहिए. उन्होंने कहा साधक को अगर सिद्धक्षेत्र की चैतन्यता का अनुभव करना है तो उन्हें जगदम्बे दुर्गा का आशीर्वचन प्राप्त करना चाहिए, इसके बाद निश्चित रूप से व्यक्ति में यह सामर्थ्य आ जाती है कि वह स्थान विशेष की चैतन्यता का आभास करने लगे। यह कोई सामान्य घटना नहीं है, इससे साधक कोई भी ज्ञात-अज्ञात स्थान पर भी यह निर्धारण कर सकता है कि कोई सिद्ध क्षेत्र आस-पास है या कोई सिद्ध साधनारत है या नहीं, भगवती तुम्हारा कल्याण करे। इतना कह कर वे धीरे धीरे अंतर ध्यान हो गए और मेरी चेतना एक क्षण में ही लौट आई।


तभी मैंने अनुभव किया कि कमरे में भीनी भीनी खुशबू छा गयी है। यह अनुभव जितना असाधारण था उतना ही असहज भी था। देवी दुर्गा की मंत्र साधना करना अनिवार्य तथ्य है यह समझ में आया था लेकिन क्यों? किस प्रकार? किस विधि विधान से यह करना है, उसके बारे में सिद्ध ने कुछ भी नहीं बताया।


इस प्रकार दिन निकलते जा रहे थे लेकिन कुछ भी निश्चय नहीं कर पा रहा था कि आखिर किस प्रकार से देवी दुर्गा की साधना उपासना की जाये जिससे की उनके आशीर्वचन प्राप्त हो सके। समय निकलता जा रहा था और मेरी असहजता मेरा चिडचिडापन बन रही थी। किसी भी प्रकार से किसी भी क्रिया में मन नहीं लग रहा था। तभी सिद्ध की बात मुझे याद आई कि सिद्ध क्षेत्र में अगर प्रार्थना की जाये तो उस क्षेत्र के सिद्ध उस प्रार्थना को सुनते ही है, लेकिन वह प्रार्थना कौतुहल के लिए ना हो ज्ञान प्राप्ति के लिए हो। फिर मैं एक क्षण को भी नहीं रुका, तुरंत से गिर सिद्ध क्षेत्र में जा कर नमन कर प्रार्थना करने लगा कि मेरा मार्ग प्रशस्त हो और, मैं साधना जगत के उस रहस्य की प्राप्ति कर पाऊं जहां पर मैं रुका हुआ हूं...


(क्रमशः)

6 views0 comments
bottom of page